***चाहते हो गर शु*** कविता
**चाहते हो गर शुकून**
चल पड़ो उन राहों पर।
“अहंकार” जहां दिखे नहीं।
पथ वही है सच्चा मित्रों।
“परोपकार” जहां रुके नहीं।।
**चाहते हो गर शुकून**
“”चिंतन “”में सृजन का बीज हो।
“”जीवन”” में न कभी खीज हो।
घर परिजन को मानते अपना।
“जीव ” सकल सबके लिए अजीज हो।
**चाहतें गर हो शुकून**
शेष बाद में लिखूंगा””निरंतर जारी रहेगा——- ।
राजेश व्यास अनुनय