चाहते नहीं अब जिंदगी को, करना दुःखी नहीं हरगिज
चाहते नहीं अब जिंदगी को, करना दुःखी नहीं हरगिज।
करके किसी से समझौता, रुलाना इसको नहीं हरगिज।।
चाहते नहीं अब जिंदगी को—————-।।
बहुत सितम हमने सहे हैं, जिंदगी को सजाने में।
महरूम इसे खुशबू से करना, मंजूर नहीं हरगिज।।
चाहते नहीं अब जिंदगी को—————-।।
किसी ने हमको यहाँ कभी, प्यार से नहीं लगाया गले।
यकीन करके किसी हुस्न का, बर्बाद करना नहीं हरगिज।।
चाहते नहीं अब जिंदगी को————–।।
पूछे नहीं हमसे किसी ने, हाल हमारे गर्दिश में।
मानकर अब किसी को दोस्त,गुलाम करना नहीं हरगिज।।
चाहते नहीं अब जिंदगी को—————–।।
अब मेरे पास पैसा बहुत है, प्यारा हूँ इसलिए सबको।
अब मगर आगे सफर में, काँटों में फंसना नहीं हरगिज।।
चाहते नहीं अब जिंदगी को—————–।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)