“चाहतें”
“चाहतें”
–राजा सिंह
प्यार करने को ,
बार-बार जाती है चाहते .
अनुनय,विनय और अनुरोध
करती है,मगर,
फिर भी निगाहें करम
नहीं होती है चाहते .
भगवान, खुदा, गॉड और
गुरु से ,
दुवांये,मिन्नतें,फरियादें की
असर कहाँ होता है,
हिकारत की नजर से
दो चार होंती है,चाहतेn.
तारीफ और तारीफों के पुल
बांधते जाते है,हम
मुस्कराती तिरछी नज़र बरसी ,
और धुल धुसरती ,
होती है चाहतें .
उनके प्यार के काबिल बने,
यह सोंचकर बदली ,
अपनी शख्सियत –
इस बात पर भी रुसवां हुई
उनकी ख्वाहिशें,अपनी चाहतें .
बददुआ देता है मन
उनकी सितमगिरी पर,
अपनी नाकामयाबी पर,
उनको कोई आंच, न आयें
ये चाहती है,चाहतें.
– राजा सिंह