“चालाक आदमी की दास्तान”
“चालाक आदमी की दास्तान”
हर तरफ, हर जगह चालाक आदमी,
फिर भी मुश्किलों में घिरा आदमी।
सुबह से शाम तक तर्कशील बनता हुआ,
अपनी ही तर्क में उलझा होशियार आदमी।
घर के दहलीज से गांव के बार्डर तक,
चलाता फिरता अपनी ज़हरीली ज़ुबान आदमी।
जिन्दगी का सफर नफ़रत फैलाने में करता,
आखरी सांस तक लाचार आदमी।।
✍️पुष्पराज फूलदास अनंत सतनामी✍️