*चार शेर (उत्सव एक भीतर हो)*
चार शेर (उत्सव एक भीतर हो)
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1
हमें मन्त्रों से बुलवाने की पूजा-विधि नहीं आती
हमारे पास साहिब ! बस मौहब्बत ही की पूँजी है
2
बुलाता हूँ मैं उसको भाव से भरकर-मौहब्बत से
वो मेरे प्यार में तूफान की तेजी से आता है
3
तुम्हारे सोने-चाँदी के वो पूजाघर में कब आया
मौहब्बत का वो प्यासा है, वो दौलत से नहीं आता
4
तुम्हारे नृत्य के-संगीत के यह जश्न अच्छे हैं
मुझे लेकिन प्रतीक्षा है कि उत्सव एक भीतर हो
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451