चार लोग क्या कहेंगे
चार लोग क्या कहेंगे
बचपन से जवानी की
दहलीज पर रक्खा कदम
मां ने सचेत किया
अब बचपना बीत गया
संभल कर चलना
ज्यादा कूद फांद मत करना
हंसी ठिठोली मत करना
घर के काम में हाथ बटाओ
धीमी आवाज में बातें करना
चार लोग क्या कहेंगे
इस बात से तुम डरना
कॉलेज में प्रवेश लिया
पापा ने सचेत किया
कॉलेज से सीधे घर आना
घूमने फिरने निकल न जाना
अपनी पढ़ाई से मतलब रखना
फिजूल बातों पर कान न देना
सोच समझ कर मित्र बनाना
अपने विवेक से निर्णय लेना
चार लोग क्या कहेंगे
इस बात से तुम डरना
परिणय सूत्र में जब बंधी मैं
पापा ने फिर सचेत किया
जिसने दिया तुम्हें अपना लाड़ला
उनकी मत करना अवमानना
तुम हो दो कुलों की लाज
मत आने देना किसी पर आंच
पापा ने कर्तव्यों की गठरी पकड़ाई
बोली करती हुई बिदाई
बेटी ! चार लोग क्या कहेंगे
इस बात से तुम डरना
धीरे धीरे सब बिदा हो गए
क्या मायका क्या ससुराल
चार लोग क्या कहेंगे का..
डर अभी भी था बरकरार
मैने बेटी को समझाया
अब संभल कर रहना होगा
चार लोग क्या कहेंगे
इस बात से डरना होगा
बेटी ने मुझको पास बैठाया
सुंदर शब्दों में समझाया
सदा चार लोगों के भय से
अर्पित कर दिया सारा जीवन
कभी नहीं सुनी अपने दिल की
कभी नहीं की अपने मन की
कौन हैं यह चार लोग
आप जिनसे इतना डरती हैं
चार लोग कोई नहीं मां
यह केवल मन का भ्रम है।
दीपाली कालरा