चार लाइनर विधा मुक्तक
कोई बोले और बोलते ही रहे
गड्ढे मुरदे उखाड़ते रहा वा रहे,
रसोई के बर्तन एकदम रिक्त हे
वह कैसे इसे विकास को सहे.
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गर्व से जिसे हम सुनते पले बडे हुये.
वो संविदा मौलिक अधिकार दिये,
हनन हुआ, समरसता की ओर गये ,
क्या रहना उस राष्ट्र में बिन भौर भये,
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इस धरती पर तथागत महात्मा बुद्ध आये,
पंचशील के सिद्धांत में समता महावीरजैन.
वेद आये, उपनिषद, रामायण,गीतों के गीत,
दुनिया वैसी ही रही, आये रैदास मीरा कबीर.
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जाना चाहते हो, जिस ओर जाओ, बढ़ो,
पग पग पर बाधा है, इस पर ध्यान धरो,
पार हो गये तुम, समझ लेना विजेता हो,
मार्गप्रशस्त किये तुमने,भवसागर पार हो.
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बिन वजह तुम अत्याचार सहो दबे रहो,
कौन तुम्हें उभारने आये,होश से काम लो,
सत्ता कुचक्र, तुमसे नहीं चलता, देख लो.
संरक्षक सत्ता, जो कोई कानून तोड़ता हो,