चार दिन की ज़िंदगी
चार दिन की ज़िंदगी
चार दिन की ज़िंदगी, कितनी कम होती है,
हर पल की खुशियों को यहाँ बस थोड़ी होती है।
पहला दिन, जब सूरज उगता है,
जीवन की आशा जगता है।
नई उम्मीदों की किरणे छाती है,
सपनों को चांदनी राती है।
दूसरा दिन, जब सूरज चढ़ता है,
संघर्षों का सामना करता है।
समस्याओं के साथ लड़ना होता है,
खुद को साबित करना होता है।
तीसरा दिन, जब सूरज तपता है,
गर्मी की धूप सबको सताती है।
थकान और थकावट से लड़ना होता है,
हर चीज़ में खुद को पहचाना होता है।
चौथा दिन, जब सूरज ढलता है,
धीरे-धीरे रात का आगमन होता है।
खुशियों की ख़बर देना होता है,
आगे के दिनों का इंतज़ार करना होता है।
कार्तिक नितिन शर्मा