चार दिन कि जिन्दगानी
चार दिन की जिन्दगानी*
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चार दिन की हो जिन्दगानी
मस्ती से भरपूर हो जवानी
अगर कोई भी न हो दीवाना
कैसै उल्फत में होगी दीवानी
घाव तलवार का है भर जाए
चोट पहुंचती है बहुत जुबानी
हमसफ र न हो रहगुजर में
बहाव में कैसे बहेगी रवानी
सदैव सच्चाई से निभते रहें
रिश्ते नातो मेंत्रन हो बेईमानी
मनमर्जियों से हों मुक्म्मल हों
कहीं कोई होती न हो शैतानी
झूठे फ़रेबों में नहीं धंस जाए
जिन्दगी मौसम सी सुहानी
मनसीरत जीने का है शौकीन
जीवन की शामें हों सुहानी
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)