चार चोका
प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
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चार चोका
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01.
पूर्वा की गोद
खेले शिशु सूरज
भव्य ये दृश्य
खिल उठी री धूप !
देख प्रसन्न
बगिया के सुमन
हो कर मोद
पंछी के कलरव
करें भोर स्वागत ।
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02.
रंग रात के
मानो वे भेद रहे
मर्म तम के
या कहूँ जीवन के
हृदय गुफा
गहन अंधकार
सुख व दुःख
नीरवता की लहरें
बुन चलीं सन्नाटे ।
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03.
बढ़ी तपन
सूखने लगी घास
अब की बार
चिड़िया के मन में
जगी है आस
चुन चुन तिनके
बुनेगी नीड़
देख प्रसन्न पंछी
खुले सृजन द्वार ।
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04.
शैल खण्डों में
जाग उठी चेतना
आस्था से प्रीत
नयन ये तृषित
प्राण व्याकुल
गीत कलकल के
गाते सस्वर
निश्चल व निश्छल
बह चले निर्झर ।
☆☆☆☆☆☆☆☆☆
■ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
मो.नं- 7828104111