चार काँधे हों मयस्सर……
प्यार तो सारा है उनका बस दिखाने के लिए,
ढूँढते हैं वो बहाने ज़ुल्म ढाने के लिए।।
ख़ुद ब ख़ुद कश्ती किनारे तक नहीं जाती कभी,
हौसला भी चाहिए कुछ पार जाने के लिए।।
हो गये हम बेवफ़ा,होते हुए भी बावफ़ा,
है बचा अब और भी क्या आज़माने के लिए।।
चार काँधे हों मयस्सर और नम आँखें सभी,
काम ऐसा कीजिए अन्तिम ठिकाने के लिए।।
छोड़ देती है ग़रीबी हर किसी इंसान को,
दर-ब-दर की ठोकरें दुनिया में खाने के लिए।।
याद सदियों तक उसे ही रखता है दौरे – जहाँ,
ज़िन्दगी जिसने जिया अक्सर ज़माने के लिए।।
” अश्क ” वो समझे नहीं ख़्वाहिश मेरे दिल की कभी,
चंद तिनके चाहिए थे आशियाने के लिए।।
©शायर – अशोक कुमार ” अश्क चिरैयाकोटी “