“चारों और फैला आज उजियारा बहुत है”
चारों और फैला आज
उजियारा बहुत है।
उजियारे में व्याप्त(फैला)
अंधियारा बहुत है।
झुण्ड तो है,इंसानो का
उन इंसानो में भी व्याप्त शैतानों
का पहरा बहुत है।
परिचित आज खुद से इंसान और
खुद से ही इंसान आज अनजाना बहुत है।
गंमगुस्सार का मुखौटा
लगाएं बैठे हुए है सब
आज गम्माजों (भेदिया,चुगलबाज)
का हर कदम पर पहरा बहुत है।
नाउम्मीद में आस की
एक किरण का
आ जाना ही बहुत है।
हर सफलता के पीछे
हार का अफ़साना भी बहुत है।
भूपेंद्र रावत
17।01।2017