चारों ओर धुंआ – धुंआ सा है
चारों ओर धुंआ – धुंआ सा है
चारों ओर धुंआ – दुआं सा है
चारों ओर नशा – नशा सा है
अनैतिक आचरण से
प्रदूषित होता समाज
आज भयावहता फैला रही है
अपने हाथ चारों ओर
डरा – डरा सा मानव
सोचने को मजबूर
आखिर कब हटेगी
ये अन्याय की धुंध
आइतिकता की धुंध
चारों ओर फैलता
आधुनिकता का नशा
पल – पल बार – बार
गिरता मानव
उठने का करता
असफल प्रयास
शक्ति का प्रदर्शन
कमजोर व दीन पर
जिसे मिलता नहीं सहारा
सह रहा
इस अमानवीय समाज में
ढूँढता किनारा
न्याय की देवी पर से
उठता विश्वास
रक्षकों पर ग रहे
भक्षक होने के आरोप
इस सब व्यथाओं के चलते
देश में छ रहा
अखंडता को रोंद्ता घना कोहरा
विवश है यह भूमि
यह धरा जिस पर
राम , कृष्ण
गौतम , महावीर
गुरुनानक जैसे
असाधारण मानवों ने जन्म लिया था
जिनके आदर्शों की
दुहाई देकर
हम बच्चों को बड़ा कर
सुसंस्कृत बनाने का दावा
करते हैं किन्तु
कहीं न कहीं
हमारे आज के
दैनिक आचरण
इस पीढ़ी को
हमारे स्वयं के द्वारा
निर्मित किये आदर्शों
जिनका कोई सत्य नहीं है
आधार नहीं है पर अग्रसर होने को
इस युवा पीढ़ी को
बाध्य करता है
जरूरत है इस जीवन में
उन असाधारण
मानवों के जीवन की
अविस्मरनीय छवि को
युवा पीढ़ी के जीवन में
उतारने की जो उन्हें
गर्त से निकाल
नए सूरज की तरह
उदीयमान करे
ध्रुव की तरह किंचित
उनका अम्बर में स्थान हो
सत्य चहुँ ओर विद्यमान हो
कर्म्पूर्ण मानव हो
सुसंस्कृत ज्ञान का विस्तार हो
युवा पीढ़ी सभ्यता व संस्कृति
की पहचान हो
न फिर कोई शक्ति प्रदर्शन हो
न फिर कोई अमानवीय हो
न फिर कोई दीन हो
न फिर कहीं अन्याय हो
धरा स्वर्ग हो
मानव इसका अभिमान हो