चाय पानी
लघु कथा
शीर्षक-चाय पानी
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राम सिंह ने आज आँफिस से छुट्टी ले रखी थी! अपने बच्चों के दाखिले के लिए कई तरह के प्रणाम पत्र बनवाने थे। इसलिए सुबह बिस्तर से वह जल्दी उठ ही गये कि दफ्तरों में कितनी लंबी लाइन में लगी हो, कितना समय लग जावे।
‘उफ कितने झमेले हो गऐ है किसी अच्छे स्कूल में दाखिला करवाने के लिए ,एक मेरा समय था …ना कोई झिकझिक न टिकटिक,,,,’ – बड़बड़ाते हुए राम सिंह घर से बाहर आये।
‘आँटो ‘- आँटो वाले को हाथ देकर रोका।
– ‘जी साहब कहाँ जाना है। ‘
– ‘तहसील भवन तक ‘
– ‘जी, साहब ! बैठिये ‘
लगभग पंद्रह मिनट पश्चात आँटो एक बड़ी सी इमारत के सामने आकर रुका …
‘जी साहब आ गई आपकी मंजिल ‘ – ऑटो ड्राइवर ने कहा।
राम सिंह ने पैसे दिये ओर कदम बढ़ाते हुए भवन के हाल तक आ गये। बडे बाबू का कमरा सामने ही था, आज भीड़-भाड भी कम लग रही थी, तो राहत की सांस ली ओर कमरे की ओर बढ़ने लगे, तभी एक आवाज आई – ‘रुकिए कहाँ जा रहे हो? क्या काम है’
पीछे मुड़कर देखा, शायद चपरासी था।
– ‘कुछ नहीं साहब से मिलना है ‘
– ‘क्या काम? ‘
– ‘प्रमाण पत्र बनवाने है ‘
– ‘साहब से सीधे नही मिलते, पहले मुझसे मिलो …. मेरे साथ आओ’ – राम सिंह उसके पीछे हो लिये।
– ‘जी कहिए’
– ‘प्रमाणपत्र तुरंत बनवाने है या चक्कर लगाने है ‘
– ‘जी चक्कर कौन लगाएगा, तुरंत ही बनवा दो’
राम सिंह ने उसकी क्रिया विधि को देखते हुए जेब से एक सौ रुपये का नोट निकालकर उसकी तरफ बढ़ाया ….
– ‘यह क्या करते हो साहब, आप रिश्वत दे रहे हो .. ‘
– ‘नही जी, ऐसा मैंने कब कहा, ये तो चाय पानी के लिए है ‘
– ‘नही यह रिश्वत है, और रिश्वत लेना पाप है, अगर आप कुछ करना चाहते हैं तो मेरे लिए दो कप चाय ले आइये ‘ – उसने बढ़े अदब से कहा।
राम सिंह बाहर निकल कर आये और चाय वाले को दो कप चाय का ऑर्डर दिया।
चाय वाले ने राम सिंह को चाय दी और चाय के साथ एक झटका भी दिया , झटका क्या झटके के रूप में एक हजार रुपये का बिल था।कदाचित चाय-पानी का यही मतलब था ।
अब राम सिंह की समझ में आ गया था सिस्टम का नियम , रिश्वत लेना पाप है, लेकिन चाय पानी पर पूरा हक है …चाय पानी में ही पूरी कहानी है ।
राम सिंह मन ही मन बडबडाते हुए दो कप-चाय हाथ में लिए भवन में प्रवेश कर रहे थे, बिना चक्कर लगाये प्रमाणपत्र बनबाने के लिए।
राघव दुबे
इटावा (उ०प्र०)
8439401034