*चाय ,पकौड़ी और बरसात (हास्य व्यंग्य)*
चाय ,पकौड़ी और बरसात (हास्य व्यंग्य)
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किसी को बरसात अच्छी लगती है ,किसी को बरसात में चाय ज्यादा अच्छी लगती है । किसी – किसी को बरसात में चाय के साथ पकोड़े बहुत अच्छे लगते हैं ।लेकिन पकोड़े बनाना स्वयं में एक समस्या है। पत्नियां जब देखती हैं कि नीले आकाश पर बादल छाने के लिए व्याकुल हो रहे हैं तथा उनकी कालिमा से वातावरण ग्रस्त होने ही वाला है ,तब वह यह उपाय सोचने लगती हैं कि पकोड़े बनाने से कैसे बचा जाए ?
चाय तक तो बात ठीक है। दिन में एक कप ज्यादा बना ली । लेकिन पकौड़े बनाना कोई आसान काम तो है नहीं ? पहले आलू काटो ,फिर बेसन घोलो । फिर एक – एक पकौड़ी घी में तलो । पत्नियां पसीना – पसीना हो जाती हैं और पतिदेव को बरसात का आनंद लेने से ही फुर्सत नहीं मिलती । ऐसी भी क्या बरसात कि पत्नियां रसोई में पकोड़े तलें और पतिदेव आकाश में बादलों को देख-देखकर मुस्कुराएँ !
आखिर वही होना था ,जिसकी लॉकडाउन के बाद उम्मीद की जा सकती थी । एक पत्नी ने अपने पति को बरसात में पकौड़े तल कर देने से इनकार कर दिया । उसने कहा ” हे पतिदेव ! अगर आपको बरसात अच्छी लगती है , आकाश में छाए हुए मेघ हृदय को आनंदित करते हैं तो यह आनंद दूसरों को भी बाँटिए अर्थात स्वयं पकोड़े तलिए और पत्नी को खिलाइए!”
सुनते ही पतिदेव भड़क गए । बोले ” हमेशा से यही होता आया है कि बरसात का मौसम आता है ,पतिदेव खुश होते हैं और पत्नियां उन्हें प्लेट में गरम-गरम पकोड़े लाकर खिलाती हैं ।”
पत्नी ने कहा “पतिदेव जी ! यह सब लॉकडाउन से पहले की बातें हैं ।अब जब आप झाड़ू-पोछा कर चुके हैं ,बर्तन मांज चुके हैं और कपड़े धोने में भी कोई परहेज नहीं करते हैं तो फिर बरसात का मौसम साथ मिलकर आनंदित होने के लिए तैयार क्यों नहीं होते अर्थात बेसन आप फेंटिए, आलू मैं काटती हूं । यह रही कढ़ाई ! इसमें घी डालिए और गैस पर गरम होने के लिए रख दीजिए ।”
पति महोदय ने दो-चार मिनट तक तो ना-नुकर की । लेकिन अंत में हथियार डाल दिए अर्थात बेसन फेंटना शुरू कर दिया। पत्नी मुस्कुराने लगी । बोली “आज से बरसात में चाय पकौड़ी का नया युग आरंभ हो गया है ।”
फोटो खींचा और महिला मंडल में सहेलियों के व्हाट्सएप पर पतिदेव का बेसन फेंटते हुए सुंदर फोटो चारों तरफ घूमने लगा। बस फिर क्या था ! खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है । इसी तरह एक पतिदेव को पकौड़ियाँ बनाते देखकर सभी पत्नियों ने अपने पतियों के लिए फरमान जारी कर दिया “आगे से जब भी बरसात आएगी, पकौड़ी हम अकेले नहीं बनाएंगी। बेसन पतियों को ही फेंटना होगा ।”
अब पतिदेव मुसीबत में फंस गए । हालत यह है कि आकाश में बादल आते हैं , रिमझिम बूंदे भी बरसना शुरू हो जाती हैं, लेकिन पतिदेवों के मुंह से पकौड़ी की फरमाइश नहीं निकल पाती । वह कुछ कहना चाहते हैं मगर आवाज गले में फँस कर रह जाती है । उन्हें मालूम है कि पकौड़ों की फरमाइश करते ही बेसन की थैलिया सामने रख दी जाएगी । फिर बेसन फेंटना पड़ेगा । कढ़ाई में तेल डालकर गर्म करना होगा । अब पकौड़ों की फरमाइश भारी-भरकम मेहनत को निमंत्रण देने के समान है। पत्नी पूछती है “कितना सुंदर मौसम है ! आकाश में बादल है ! रिमझिम बारिश हो रही है । हे पतिदेव ! इस समय आपको कैसा लग रहा है ?”
पतिदेव चिढ़कर कहते हैं “कुछ नहीं लग रहा । यह मौसम है । आया है ,चला जाएगा ।आराम से कुर्सी पर बैठो । पतियों का जीवन बेसन फेंटने के लिए थोड़े ही है ! ” पतिदेव को बदला हुआ देखकर पत्नियां मुस्कुरा देती हैं। अब बरसात तो आती है ,लेकिन चाय-पकौड़ों की फरमाइश नहीं आती।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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