चाय के दो प्याले ,
चाय के दो प्याले ,
बस यूँ हीं लेकर बैठी है
आज शाम
खिड़की पर
कितनी उदास सी लगती है
बतियाती है जाने क्या क्या
सुनने वाला कोई नहीं
मन के छाले
ह्रदय की पीड़ा
गुनने वाला कोई नहीं,
अपने आप को
मना रही है,
अपने आप से रूठी है,