पंचचामर छंद एवं चामर छंद (विधान सउदाहरण )
पंचचामर छंद एवम् चामर छंद विधान
(विधान सउदाहरण )
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चामर छंद –
मापनी- 212 121 212. 121. 212
रगड़ जगड़ रगड़ जगड़ रगड़
पक्ष वर्ण = पंद्रह वर्ण का वर्णिक छंद।
(गुरु लघु ×7)+गुरु = 15 वर्ण
चार चरण दो- दो या चारों चरण समतुकान्त।
धर्म-अर्थ काम मोक्ष चार द्वार साधना |
लोभ मोह क्रोध छोड़ सत्य नित्य कामना ||
प्रीति नीति है महान जिंदगी सुधारना |
देखना सुभाष हीन पास हो न भावना ||
मान सावधान है गुरू उसे न छोड़ना |
मित्र फूल है जहान में उसे न तोडना ||
प्रीत गीत न्याय नीति भाष को सुधारना |
आसपास है प्रभू जरा उसे पुकारना ||
क्रोध क्षोभ छोड़-छाड़ प्रेम को सजाइए |
नेह नूर का प्रकाश नेह से उगाइए ||
खार-रार मारकाट आप ही भगाइए |
भावना महान नेकता सुजान गाइए ||
आपकी सुने सभी सदा यहाँ प्रकाश हो |
नेक राह चाह संग द्वार में सुभाष हो ||
आपका जहान शान गान का निवास हो |
फूल भी खिले पुनीत जो नहीं उदास हो ||
©सुभाष सिंघई
एम• ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़ ) म० प्र०
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पंचचामर छंद 16 वर्ण
(लघु गुरु ×8 = 16 वर्ण )
जगण रगण जगण रगण. जगण दीर्घ
मापनी- 121. 212 121 212. 121 2 ( 24 वर्ण )
चार चरण दो- दो या चारों चरण समतुकान्त।
उगे यहाँ जहाँ-तहाँ , तड़ाग में सरोज है |
चले जहाँ रहे बढ़े , मिली पुनीत खोज है ||
रही ” सुभाष” वीरता , दिखी अतीत शान है |
स्वदेश के सुने यहाँ , सदा सुजीत गान है ||
डटे यहाँ किसान हैं , खड़े रहे जवान है |
मिशाल देखिए यहाँ , पुनीत देश गान है ||
महान देश सदा से , ध्वजा तिरंग मानते |
अनंत है कथा यहाँ , स्वदेश भूमि जानते ||
अतीत की मशाल है , मिशाल देख मान है |
सभी कहें यहाँ अभी , पुनीत संविधान है ||
नदी पहाड़ श्रृंखला , बसंत का सुगान है |
सुनो सुबोल भारती , सभी यहाँ महान है ||
सभी दिशा पवित्र हैं , प्रभा सदा बिखेरती |
धरा बहे भगीरथी , अनंत पाप तोड़ती ||
करें सदैव बंदना , सभी उसे पुकारते |
मिले जुले संग रहे , व आरती उतारते ||
©सुभाष सिंघई
एम •ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़ ) म० प्र०