* चान्दनी में मन *
** गीतिका **
~~
हृदय में स्नेह की मृदु भावनाओं को जगाता है।
निशा है चान्दनी में मन हमेशा डूब जाता है।
बिखरती चन्द्रिका भू-पर रजत आभा लिए जब भी।
बहुत यह दृश्य नैसर्गिक सभी के मन सुहाता है।
निराली शान तारों से भरे सुन्दर गगन की है।
निशा को खूब आकर्षण भरे क्रम में सजाता है।
हमेशा प्रेमियों का मन चुराती चान्दनी रातें।
यहां निश्छल हृदय का चैन जब कोई चुराता है।
सभी को रास आती हैं धवल सी चान्दनी रातें।
तमस के आवरण को चान्द आकर जब उठाता है।
रजत किरणें बिखरती ज्योत्सना की हर धरातल पर।
यही क्रम खूबसूरत दृश्य मनभावन बनाता है।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २६/१२/२०२३