चादर ओढ़ा के बरदेखुआ लावs
गड़ जाए त वियाह ले न उखड़े
जाके हरीश -ए -सेखुआ लावs
वियाह के चाह जे पालत हौ बचवा
त चादर ओढ़ा के बरदेखुआ लावs
गाँव के बियांण चखुल्लड़ चाचा
ओहि रहिए पर बइठल बांटें
तुहरे अंतर्मन के हर एक राज में
बड़ गहराई तक पईठल बांटें
शब्द कटारी… बड़ी चोखारी
और रखलें बाटे हँसुआ..दांव
वियाह के चाह जे पालत हौ बचवा
त चादर ओढ़ा के बरदेखुआ लावs
तौलम गणेश… द्वारे महेश के
पाथर सिल्ली पर बइठल रहिहै
दूसट. खूँसठ और चिलबिल बतियां के
घोर – घोर बरदेखुआ से कहिहै
गर शांत रखल चाहत हौ उनके त
महुआमिश्र के साथ ठेकुआ खियावs
वियाह के चाह जे पालत हौ बचवा
त चादर ओढ़ा के बरदेखुआ लावs
कोशिश इहे रहे कि..अगुआ..
बरदेखुआ… के रात में लावें
कउनो कूँहण से भेट न होखे
एकरे खातिर निज साथ में लावें
नाही त ख्वाब धरल रही जाई
मिली न कब्बो नवसेखुआ.. पोलाव
वियाह के चाह जे पालत हौ बचवा
त चादर ओढ़ा के बरदेखुआ लावs
-सिद्धार्थ गोरखपुरी