चाटुकारिता
है ये गुण या है अवगुण
साफ़ साफ़ कोई बताता नहीं
लेकिन इसके बिना आसानी से
किसी के दिल में जगह बना पाता नहीं
जब तक कहता दिन को दिन
और वो रात को रात है
साधारण लगता सब, लगता है
इसमें न कोई खास बात है
हम जैसा आम इंसान रहता
अगर सिर्फ वो सच्चाई कहता
उसने तो सीख लिया ये हुनर
अब तो वो महलों में है रहता
जादू से कम नहीं है ये हुनर
भले ही कहो इसे चाटुकारिता
उसके नज़रिए से देखो तो
वो तो कहता है इसे वाकपटुता
है ये आसान और है त्वरित
नतीजे देने वाला हुनर
हर कोई खुश हो जाता है इससे
आज़मा कर देख लो ये हुनर
जो कुछ भी कह लें हम
ये हर किसी के बस की बात नहीं
लाख कोशिश से भी किसी के कहने पर
हम तो दिन को कह सकते रात नहीं
जब बन जाता है वो ख़ास किसी का
इस बात की तुमको टीस क्यों
गिराया नहीं है तुमने ज़मीर अपना
है नहीं इस बात की खुशी क्यों।