चाची
घर में बंटवारे का कलह चरम पर था बड़े बड़े होने के नाते ज्यादा चाह रहे थे छोटे चाचा बराबर की माँग कर रहे थे , कहते है ना जितनी भूख बढ़ाओ पेट उतना बढ़ता जाता है ये बात यहाँ एकदम सार्थक हो रही थी । ठहरा कलियुग दादी ने भी दोनों बेटों में से समर्थ का साथ दिया…हालात जितने भी खराब हों चाची ने कभी बच्चों में भेदभाव नही किया ये मैं भी समझता था लेकिन जो अपने भाई की बात नही सुन रहे थे वो अपने बच्चे की यानी मेरी बात कैसे सुनते ।
चाची में भगवान ने गुणों का भंडार भर कर भेजा था ये बात माँ को बर्दाश्त नही थी चाची सच बोलती थीं इसलिए उनकी ज़बान को सब कड़वा कहते । वो भयानक रात मैं कैसे भूल सकता हूँ आज भी नींद में चौंक कर उठ जाता हूँ खुद पर ग्लानि होती है की उस रात मेरी नींद क्यों नही खुली और उस रात के बाद कभी ऐसा नही हुआ की मेरी नींद बीच रात में ना खुले ।
भयानक बारिश हो रही थी हफ्तों से बाढ़ आई हुई थी बिजली भी नही आ रही थी चाची भोर में ही उठ नहा धोकर पूजा करती थी उनकी घंटी की आवाज़ सबके कानों में पड़ती । हल्की रौशनी हो रही थी तभी चाचा चाची को पुकारते हुये मेरे कमरे में आये और मुझे उठा कर बताई ” बेटा चाची नही दिखाई दे रही और ना ही तुलसी जी के पास दिया जल रहा है ना उसके कपड़े फैले हैं ” मेरे ना कहने पर परेशान से चाचा कमरे के बाहर चले गये मैं भी उनके पीछे – पीछे बाहर आ गया तब तक सब जग चुके थे ।
बाहर जाकर देखा गेट खुला था उसी में ताले में चाभी लटकी हुई थी साफ था चाची ही बाहर गई थीं , सब तरफ पानी ही पानी उसी पानी में जहाँ तक संभव हुआ हमने चाची को ढूंढा लेकिन उनको मिलना ही होता तो वो जाती ही क्यों ? पुलिस ने कहा अगर पुल से कूदी होंगीं तो कहाँ मिलेगीं पता नही , सब कुछ छोड़ चाची चली गईं । एक सवाल हमेशा जेहन में घुमता है क्या निर्जीव चीजोंं का मोह इतना प्रबल होता है की उसकी लालच में इंसान इंसान का मोह भूल जाता है …पता नही ऐसों को इंसान कहना उचित है भी या नही ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 14/10/2020 )