चाची की बरसी
*** चाची की बरसी ***
** मनहरण घनाक्षरी **
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चाचा से थी प्यारी चाची,
लाड़ लड़ाती थी चाची।
कोरोना से हार गई,
हुई स्वर्गवासी है।।
साल बाद बरसी आई,
वो न कहीं मिल पाई।
नम आँखें थक गई,
घर मे तन्हाई है।।
सरस् सा स्वभाव था,
देखा नही अभाव था।
सुंदरता की मूर्ति थी,
बनी परछाई हैं।।
जीतू बहाता है नीर,
होता आतुर अधीर।
चाचू की गोदी में लेट,
आँखें भर आईं हैं।
विकट काल बीता है,
वो मरता न जीता है।
नाथल वंश दे रहा,
दिल से दुहाई है।।
इकबाल की बसंती,
जैसे हो सन्ते की सन्ती।
बच्चों की दुलारी माता,
भूले न भुलाई है।
नजरें सारी प्यासी है,
वो दर्शनाभिलाषी हैं।
मनसीरत राहों में,
पलकें बिछाई हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)