चांद
चांद
१)
शरद की श्वेत रात्रि में
इक दिन उदास था मेरा मन,
तभी अकस्मात ही
हुआ मयंक का आगमन।
२)
बोला मुझसे उठो ना
कुछ तो बातें करो ना।
चलो वही गुनगुना दो आज तुम
फिर से जो गीत पिया को था सुनाया।
३)
“नील गगन छूने की कोशिश क्यों करूं
जब चांद मेरे पास है-“मैने ये नग़मा ज्यों गाया।
चाँद मयंक, विधु, सुधाकर मन ही मन मुस्काया।
(४)
बोले पिया अब बता दे,
है क्या माथे पर सजाया,
ज्यों चांद निकल हो आया।
मैं बोली सजन तुम्हीं मेरे मन के मुकुल
तुम्हीं कलानिधि,शशांक,शशि इंदु ।
मैं शीतल चांदनी ऐसी,हो जैसे निशा में सिंधु।
५)
हां,हर युग में हर प्रेमी युगल और कवि को
नीलम इस चन्द्र,हिमकर, ने है बहुत लुभाया।
ले आज फिर से रजनीश, हिमांशु ने ही
पी की स्मृतियों को है तरो ताज़ा कराया।
६)
देख टिमटिमाते तारों के आंगन
है चांद फिर जगमगाया।
छोड़ चकोर को चांद अकेला,
है चांदनी पर भरमाया।
नीलम शर्मा