चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
चांद का नूर जरा जरा सा बढ़ता जा रहा है
कोई है के पल पल दिल में उतरता जा रहा है
गुर्वत और अमिरी कि नाराजगी तो देखिए
तालाब दिन दिन सुख रहे हैं समंदर है के बढ़ता जा रहा है
मेरी लालटेन में मिट्टी का तेल नही है
आफताब है के बस ठलता जा रहा है
रुह कि नजदीकियां बढ़ रहीं हैं दोस्ती का दायरा घट रहा है
जो एक रिश्ता है बदलता जा रहा है
हर तरह के गुनाह का जुर्म उन्हीं के नाम है
अजिब शक्स है सब कुछ सहता जा रहा है
तो जंग ऐसे जिता हुं आज मैं
मैं खामोश हुं और वो कहता जा रहा है
तनहा इस जमीन ने बादशाहों कों फना होते देखा है
वो देखो एक बुलबुला डुबने कि कोशिश में उवरता जा रहा है