चांद कहां रहते हो तुम
चांद कहां रहते हो तुम।
किसके ख्यालों में गुमसुम।
कभी आधे और कभी अधूरे।
मुश्किल से दिखते हो पूरे।
राह तकूं मैं हर रात को
याद करूं तेरी बात को।
रात मिलन की हो जब भी
चुपके से आना तुम भी।
पूर्णिमा जब फिर आयेगी
सुबह साथ नयी लायेगी।
सुरिंदर कौर