चाँद
शरद पूर्णिमा के अवसर पर लिखी रचना
कौन आया है अँधेरे
ज्योत्सना ले साथ में
ताकती बन जोगनी
द्वार पकड़े हाथ मैं
साथ चलते ,जब मैं चलती
दौड़ते जब दौड़ती मैं
कौन आया है अँधेरे
ज्योत्सना ले साथ में
अनुरक्त हो बस ताकना
सीढ़ियाँ चढ़़ झांकना
चाँदनी के पर तुम्हारे
माँपते अट्टालिकांएं
और हम ऊँचाईयाँ
निज घरों की नापते
होता जब उल्लास मय
आमना और सामना
शशिकला से मैं नहायी
एक मन प्राण तन
हो रहा ज्यों रास संग
घूमती है ये धरा
घूमता आकाश ,घन
मन मेरा करता नर्तन
तुम सभी के सब तुम्हारे
द्वार ,छत ,नदिया किनारे
एक तुम सब के सहारे
ये प्रणय मेरा तुम्हारा
देखता संसार सारा
कौन कहता ,हो नहीं तुम
साथ मेरे हर घड़ी तुम
साथ मेरे चल रहे
चांद पूनम के निशा में
पूर्णता में कल रहे तुम
स्वरचित मौलिक
मीरा परिहार’ मंजरी ‘ 28/11/2018