चाँद
चाँद तुझे रंग दू मैं क्या
चाँद तुझे रख लू मैं क्या
स्वर्ग से सुंदर जग को बनाती
अंधेरों मे भी पहचान बनाती
बिना कहे रह पाऊँ ना पर
चाँद तुझे कह दू मैं क्या
छोटा-बड़ा आकर बदलती
कभी-कभी गायब सी रहती
अंधेरों को चिर धरा पर
स्वर्ण चांदनी सी बिखरती
कहते हुए दिन भी ढल जाएं पर
चाँद तुझे कह दू मैं क्या
किसी ऋतु मे छुपता नहीं तू
किसी जगह पर रुकता नहीं तू
क्या तेरी विश्वास कथा हैं
क्या तुझसे भगवान बड़ा हैं
कभी तेज़ तो कभी मंद पर
चाँद तुझे कह दू मैं क्या