चाँद से मुलाक़ात
दिन भर की गर्मी के बाद..
सुखी धरती पर.. तेज हवाओं
के साथ बरसात..
कुछ राहत दे गई.. पर..
बत्ती गुल कर गई..
बाहर बालकोनी में..
आधा चाँद झांक रहा था..
आधा था.. पर
पूरा रोशन..
कुछ और ध्यान से देखा तो..
कुछ परछाइयाँ नज़र आई..
चाँद पर आज भी…
एक बुढ़िया..
चरखा कात रही है..
एक बच्ची..
बेर के पेड़ के नीचे बैठकर..
रो रही है..
पच्चीस तीस साल में..
बुढ़िया शायद और बूढी..
हो गई होगी..
पर बेर के पेड़ के नीचे बैठी बच्ची..
आज भी बच्ची ही है..
और मैं अधेड़ हो गया हूं..
कल चाँद जाना पहचाना..
पुराने दोस्त सा लगा..