चाँद सह्न पर आया होगा
होगी आग के दर्या होगा
देखो आगे क्या क्या होगा
ख़ून रगों में लगा उछलने
चाँद सह्न पर आया होगा
रस्म हुई हाइल गो फिर भी
मुझको वह ख़त लिखता होगा
मुझे पता था शम्स उगेगा
फिर से और उजाला होगा
जो टुकड़ों में आप बँटा हो
क्या तेरा क्या मेरा होगा
जो भी तर्क़ करेगा मुझको
बिल्कुल तेरे जैसा होगा
छोड़ गया था मुझे मगर अब
तू पत्ते सा उड़ता होगा
सोचा नहीं था ज़ीस्त में अपने
उल्फ़त जैसा धोखा होगा
ग़ाफ़िल तो रहता है सबमें
तू बस ख़ुद में रहता होगा
-‘ग़ाफ़िल’