चाँद यूँ ही नहीं छुपा होगा।
चाँद यूँ ही नहीं छुपा होगा।
चांदनी ने ही कुछ कहा होगा।
वो परेशां सी है की क्या होगा,
जब मेरा उस से सामना होगा।
आजकल मुस्कुरा रहा है वो,
दर्द तुझसे कोई मिला होगा।
यूँ नुमाइश न कर तू ज़ख्मों की,
वक़्त सब कुछ बदल चुका होगा।
ज़िन्दगी का ये मायना है बस,
एक पानी का बुलबुला होगा।
शह्र में दूर कुछ धुंआ सा है,
आशियां मेरा जल रहा होगा।
यूँ सरेआम मत हटा चिलमन,
वरना फिर कोई हादसा होगा।
साथ जीना है साथ मरना भी,
क़ौल किसका था ये पता होगा।
ख़ाक कर दे न, मेरी हस्ती को
अब न कोई मुझे गिला होगा।
इश्क में कब तलक है जलना यूँ,
इन “परिंदों” को सब पता होगा।
पंकज शर्मा “परिंदा”🕊