चाँद चकोरी सूरत
****** चाँद – चकोरी सूरत ******
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चाँद – चकोरी सूरत मन को भाती है,
शाम – सवेरे हर पहर याद आती है।
गोरी – गोरी है सुंदर कंचन काया,
ग़जब का रूप कड़कती धूप है पाया,
बलखाती सर्प सी लंक कहर ढाती है।
चाँद – चकोरी सूरत में को भाती है।
अप्सरा हुस्न कमाल चंदा सा मुखड़ा,
मोरनी चाल हाल बेहाल दिल धड़का,
काले कटि तक बाल गौरी घुमाती है।
चाँद – चकोरी सूरत मन को भाती है।
गुलनार गोरे गाल गुलज़ार करते हैं,
सारस रसीले होठ मौजी मर मिटते हैं,
हुई मुलाकातें रात की नींद उड़ाती है।
चाँद – चकोरी सूरत मन को भाती है।
शरबती नैन मनसीरत बेचैन करते हैं,
खनकती पाज़ेब सी हँसी से डरते हैं,
फूलों सी खिली ख़ुशबू महकाती है।
चाँद – चकोरी सूरत मन को भाती है।
चाँद – चकोरी सूरत मन को भाती है।
शाम – सवेरे हर पहर याद आती हैं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)