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31 Jul 2016 · 1 min read

*चाँद को देखकर*

चाँद को देखकर चाँद कहने लगा
ईद की ही तरह अब तू’ मिलने लगा
देख लूँ आज जी भर उसे प्यार से
जोर से दिल हमारा धड़कने लगा
रात ढलने लगी फूल मुरझा गये
यार मेरा जुदा जब यूँ होने लगा
तोड़कर दिल हमारा गया बेवफा
टूटकर काँच सा ये बिखरने लगा
जिन्दगी में कई साज होते हुए
बंदगी का नया साज सजने लगा
धर्मेन्द्र अरोड़ा

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