चाँद की मोहब्बत
मुझ से चाँद कहा करता है
जमी का तुम चांद हो,
अच्छा लगता है मुझे तुम्हारी
खिड़की से झांकना,
कोई पुरानी मोहब्बत सी लगती
हो रोज निहारा करता हूँ मैं,
ओर तुम देखती हो जब मेरी तरफ
कहती हो कुदरत का करिश्मा मुझे
अनजान इस बात से की सुन रहा
हूँ मैं भी तुम्हें,
मैं साथ हूँ तुम्हारे सदा
जब देखोगी मुझे पाओगी अपने साथ
कहीं से मिल जाऊंगा तुम्हें देखता
हुआ ओर मुस्कुराता हुआ,
तब मांग लेना मुझ से कुछ भी
फिर देखना कोई ख्वाहिश अधूरी
न होगी मोहब्बत की तुम्हारी
ओर सच कहा मेरे दुख सुख के साथी
रहे तुम,
जब जब देखा आसमान में तुम
निहार रहे थे मुझे प्रेम से,
कोई हुआ ना इतना अपना
जितने हुए अपने तुम।
सीमा शर्मा