चाँद और लहरें
बादलों की बारी से, दबे पाँव चुपके चुपके,
हवा अंदर आई और चाँद के कानों में कुछ,
गुनगुना गई,
चाँद ने झरोखे की जाली से झांका -तभी –
अलसाए दरिया ने करवट सी बदली, और,
उनींदी, अलसाई, अधखुली, मुंदी आँखों से –
चाँद को देखा-
रफ्ता़ रफ़्ता दरिया पर इश्क़ तारी हुआ और,
बढ़ा दिए दरिया ने हज़ारों हज़ार हाथ,
चाँद की पेशानी पर मोहब्बत टांक देने को, आग़ोश में लेने को,
चाँद भी चांदनी के रेशम पर फ़िसलता सा,
दरिया के पहलू में हौले से उतर गया।