चाँद और अंतरिक्ष यात्री!
तू मेरी जमीं की अंधेरी तरफ़ जो आया है
क्या रौशनी करेगा या कुछ चुराने आया है!
क्या नहीं मिला ज़मीं पे खोज करके तुम्हें
जो खोज करने यहाँ मेरी जमीं पे आया है!
तुम्हें यहाँ देखकर मैं असमंजस में हूँ बड़ा
क्यों यहाँ आने का तुमने जोखिम उठाया है!
तेरे वहाँ तो सुना है ज़मीन टुकड़ों में बँटी है
घूमना आसान नहीं पाबंदियों का साया है!
न पासपोर्ट न ही कोई वीज़ा बनाया तुमने
फिर कैसे यूँही मुँह उठाकर चला आया है!
यहाँ जो मेरी इजाज़त बिना उतर आया है
चल बता भी जमीं से क्या संदेशा लाया है!
निकलने को कभी छुप जाने को कहते हो
कभी मामा तो कभी मुझे महबूब बताया है!
मुझे तुमसे क्या कहकर मुख़ातिब होना है
इस फ़ैसले का क्या कोई फ़रमान लाया है!
इस्म पर सवालिया निशान लगा रक्खा है
समझ में ही नहीं आता मुझे क्या बनाया है!
मेरे आधे हिस्से में सदा अंधेरा ही रहता है
तुम्हारा तो हर कोना सूरज ने चमकाया है!
उस जहाँ में किस बात की कमी हो सकेगी
जिसे सूरज की रौशनी ने ख़ूब नहलाया है!
सुना है तू यहाँ पानी की खोज में आया है
सुना है बस्ती बसाने का इरादा भी लाया है!
न धरती पे जमीं कम है न पानी की कमी है
क्यों क़ब्ज़े का इरादा लिए तू यहाँ आया है!
लालच में फँसे की देखो कैसी दुर्दशा हुई है
दिमाग़ बस छीनने हड़पने में क्यों लगाया है!
बेहतर होता इंसान अपनी जमीं ही खोजता
कोई वहाँ हालात बेहतर बनाने की सोचता!
विध्वंस के कगार पहुँच विनाशकारी खड़ा है
रुकता नहीं जानते हुए इसका अंजाम बुरा है!
इस होड़ से इंसान क्या कभी निकल सकेगा
लगता तो नहीं एक सौम्य समाज रच सकेगा!
ब्रम्हाण्ड विजय का स्वप्न बस स्वप्न ही रहेगा
सब उजड़ जाएगा फिर बस शून्य हाथ लगेगा!