चाँदनी में नहाती रही रात भर
चाँदनी में नहाती रही रात भर
तारों में घर बनाती रही रात भर
नींद के गाँव में प्यार की छाँव में
ख़्वाब अपने सजाती रही रात भर
चाँद की रोशनी के तसव्वुर में मैं
दीप सी टिमटिमाती रही रात भर
याद करके बदलती रही करवटें
आँख भी छलछलाती रही रात भर
रात रानी की मानिन्द मजबूर थी
बस महक ही लुटाती रही रात पर
वक़्त रहता नहीं है सदा एक सा
दिल को बस यूँ मनाती रही रात भर
नींद आई नहीं फिर भी मैं ‘अर्चना’
लोरियाँ गुनगुनाती रही रात भर
डॉ अर्चना गुप्ता