चाँदनी भरी रात
**चाँदनी भरी रात (ग़ज़ल)**
***212 212 212 12****
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चाँदनी से भरी रात चाहिए,
प्रेम की दात बरसात चाहिए।
लोभ में लोग देते नज़र सदा,
स्वार्थ से मुक्त सौगात चाहिये।
तीक्ष्णता से सदा हो बुरी जुबां,
बस शहद से सनी बात चाहिए।
भाव से हीन गाथा कमी नहीं,
भाव से युक्त जज़्बात चाहिए।
हाल बेहाल होने लगा यहाँ,
भयरहित पाक हालात चाहिए।
हो चुका जो गलत भूलते रहो,
नव सही शाह शुरुआत चाहिए।
खेल सीरत कभी वो न खेलते,
जानलेवा विटप शात चाहिए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)