च़ंद इज़हार
पत्थरों को मैं पहचान नहीं पाया मेरी तो सोहब़त फूलों से थी।
जान कर भी वो अनजान बन रहे हैं शायद उन्होंने दोस्तों के फ़रेब खाए हैं।
क्यों कर पहली नज़र में कोई अपना सा लगने लगता है और जो हमेशा पास रहता है दिल से दूर नज़र आता है।
हम तो ज़ब्ते ए शौक़ का दामन थामे रहे पर उनमें इंतज़ार का स़ब्र नहीं था।
ताउम्ऱ उन्होंने दौलत कमाई पर आखिर में दिल के मुफ़लिस ही निकले।