चश्म ए नमनाक की ये तो बाजीगरी हैं
चश्म ए नमनाक की ये तो बाजीगरी हैं
जब भी उनके दर से लौटे है आँसू गिरी है
ये दिल है मेरा … कि है आबला ए समन्दर
फूटे न बहे दर्द के मवाद से लबालब भरी है
जिस के देखे से ही सुलग जाती हूं मैं
जो छू ले तो लगे कोई दहका खड़ी है
जिस दिल के मशरिक़ में रहा वो खुदा बन के
उस दिल के मग़रिब में उसकी चप्पल पडी है
जीस्त भी क्या क्या सर्कस नहीं दिखती है पुर्दिल
चश्म जीने पे उसके तो जाॅं आफ़त में पड़ी है
~ सिद्धार्थ