चल लिख कवि ऐसी बानी
चल लिख कवि , ऐसी बानी ।
नहीं दूजा कोई, तुझसा सानी ।
चल प्रखर कर, अपनी कटार ।
गर मरुस्थल में लाना है बहार।
अब देश मांगता, तेरी कुर्बानी ।
चल लिख कवि , ऐसी बानी ।
ईश का गुणगान छोड़ , मत बन मसखरा ।
जन को सच्चाई बता,मत बन अंधा बहरा।
देश का है लाल तू,माटी की बचा ले लाज।
दरबारी कवि नहीं,खोल दे पापी का राज़।
मनोभाव भरे जिसने,कर उसपे मेहरबानी।
चल लिख कवि ,ऐसी बानी ।
जब बिक चुका मीडिया,कौड़ी के भाव में ।
जिम्मेदारी बढ़ी है तेरी,आ जाओ ताव में ।
छेड़ अभियान चल , जन जागृति पैदा कर।
अन्याय आगे ईमान का,कभी ना सौदा कर।
समाज को नेक राह दिखा,करके अगवानी।
चल लिख कवि ,ऐसी बानी ।
(मनीभाई रचित)