चल रस्ता रोकें
चल रस्ता रोकें
© बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर
कहीं सड़क पर, कहीं रेल पर
चल रस्ता रोकें.
सारी फसल कट गई अब कुछ,
काम नहीं बाकी.
मुन्नी-मुन्ना, भाभी-भैया
चल काका-काकी.
जो भी भाग रहा है सरपट,
आ उसको टोकें.
कोई मंजिल अपनी पाए,
नहीं हमें भाये.
देख दूसरे की खुशियों को,
दिल ये जल जाये.
सबकी चाह टाँग सूली पर,
कील एक ठोकें.
चलो प्रेम का बाग़ उजाड़ें,
मन को बहलायें.
नफरत की खेती में जाकर,
पानी दे आयें.
दूर बैठ अपनी कुर्सी पर,
चलचित्र विलोकें.