चल मुसाफिर गांव के ओर
चल मुसाफिर गांव के ओर,
अपने शहर का हाल है बुरा।
विकास के नाम पे, संस्कारों का हो रहा विनाश।
आधुनिकता के आग में झोंक दिया सब परम्परा।
अश्लिलता से भरा पड़ा,
अविश्वसनीय ख्वाबों के अंगारों पे खड़ा।
भस्म हो गई निती सब,
सिवाए रोने के ना कुछ बचा।
चल मुसाफिर लौट चल अपने गांव के ओर,
वह धरा भी तेरा कर रही इंतजार।
धर्म के आर में नहीं होते वहां वार,
मिट्टी में ही सुकून की खुश्बू आती वहां।