चलो सच को गले लगाते हैं
चलो सच को गले लगाते हैं।
सत्य जब डर कर बैठ गया हो कहां सहारा पाएंगे
आंखों के अश्रु को भी हम गंगाजल ही बनाएंगे
न्याय नहीं मिलता जब यारो सच कब तक छिपाएंगे
क्या खुम्मारी में बैठे उल्लू आदमखोर ही बन जाएंगे
सत्य न्याय का दर्पण होता साफ नजर ही आता है
शक्तिशाली तानाशाही आगे नहीं टिक पाता है
ओ.. बहरुपये रूप बदलने वाला ये ही करता है
रावण को भी ले लो दस सिर अंत समय यही होता है
कुछ भी कर लो कुछ भी कर लो तपस्वी वही होता है
अन्याय के आगे टिक कर नौछावर प्राण करता है
शासन की लकीरे कब तक उसका साथ देती है?
सत्य मिटाये नहीं मिटता फिर पर्दाफाश ही होता है
ओ जनता के सेवक सुन लो अन्त बुरा फिर होता है
तिल तिल कर के अटल मरे थे कौन भला फिर होता है
जनता सेवक जनता पर ही अत्याचार क्यों करता है?
हाथ खुली ये रेखा सबकी अच्छा क्यों नहीं होता है?
आवाजों में दम होता है दम से ही विश्वास बना है
विश्वासो के ही कारण ही फिर आज शासक बना है
अनगिनत लोग आये यहां है यूं ही फिर चले जाते हैं
खुम्मारी को छोड़ो यारों चलो सच को गले लगाते हैं।
**सद्कवि प्रेमदास वसु सुरेखा**