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3 Jan 2022 · 1 min read

चलो सखे

गीतिका
आधार छंद- वाचामर
मापनी- 2121 2121 2121 212
०००००
चलो सखे
०००००
!! श्रीं !!
गंदगी भरी हुई बुहारते चलो सखे ।
प्रेम खो कहाँ गया निहारते चलो सखे ।1

बिजलियाँ गिरें नहीं चमन जले न खाक हो ।
बेखबर पड़े उन्हें पुकारते चलो सखे ।।2

सुन्न उँगलियाँ हुई तुषारपात हो रहा ।
जो पड़े ठिठुर रहे सँवारते चलो सखे ।।3

राग-द्वेष भेद-भाव का बढ़ा प्रभाव है ।
राग नेह का सुना सुधारते चलो सखे ।।4

लक्ष्य दूर है बहुत चले-चलो न बैठना ।
मर ग‌ई जिजीविषा उभारते चलो सखे ।।5

शब्द साधना करो लिखो नवीन गीत तुम ।
सत्य को सदैव ही दुलारते चलो सखे ।।6

आँधियाँ बुझा न दें जले हुए चिराग को ।
ज्योति हारना नहीं विचारते चलो सखे ।।7
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
***
03/01/2022

466 Views
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