चलो सखे
गीतिका
आधार छंद- वाचामर
मापनी- 2121 2121 2121 212
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चलो सखे
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!! श्रीं !!
गंदगी भरी हुई बुहारते चलो सखे ।
प्रेम खो कहाँ गया निहारते चलो सखे ।1
०
बिजलियाँ गिरें नहीं चमन जले न खाक हो ।
बेखबर पड़े उन्हें पुकारते चलो सखे ।।2
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सुन्न उँगलियाँ हुई तुषारपात हो रहा ।
जो पड़े ठिठुर रहे सँवारते चलो सखे ।।3
०
राग-द्वेष भेद-भाव का बढ़ा प्रभाव है ।
राग नेह का सुना सुधारते चलो सखे ।।4
०
लक्ष्य दूर है बहुत चले-चलो न बैठना ।
मर गई जिजीविषा उभारते चलो सखे ।।5
०
शब्द साधना करो लिखो नवीन गीत तुम ।
सत्य को सदैव ही दुलारते चलो सखे ।।6
०
आँधियाँ बुझा न दें जले हुए चिराग को ।
ज्योति हारना नहीं विचारते चलो सखे ।।7
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा !
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03/01/2022