चलो मान लिया इस चँचल मन में,
चलो मान लिया इस चँचल मन में,
हो गई विश्व विजय इस क्षण में,
पाकर अमर अज़र तकनीकी,
हो गए दुर्जय हम इस जग में..
.
पा लिया संभव था जो धन से,
हुए उन्मत्त मनाये जलसे,
पाकर वश आर्थिक मारीच पर,
घूमें विवश हम डिजिटल वन में..
.
फिर भी अस्थिर यह मन होगा,
चहुँ ओर कोलाहल होगा,
जो ना खोजा इस प्रश्न का पथ,
हर पग शून्य बराबर होगा…
–