चलो जहाँ की रूसवाईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की रूसवाईयों से हम दूर चलें
दिल की मासूम तन्हाईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की…………..
ये लोग तकते हैं बेगैरत निगाहों से हरदम
क्यों रहें इनकी परछाईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की…………..
क्यों रहें बेमुरब्बत नफरतों के जहाँ में हम
आओ जमाने की बुराईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की…………..
नहीं जमाने को मोहब्बत रास आई हमारी
क्यों रहें गम की सहनाईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की………….
चलो”विनोद”चलतें हैं हाथ पकड़कर दोनों
अब जिंदगी की गहराईयों से दूर चलें
चलो जहाँ की…………..
:— स्वरचित
( विनोद चौहान )