चलो चलते हैं !
चलो चलते हैं !
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जब कुछ करेंगे
तब हम बचेंगे !
चारों ओर से ही
ऑंधी-तूफान चली है !
वैसे तो पहले से ही
चेतावनी दी गई थी !
जो अब हकीक़त में
बदल सी गई है !!
अब बस, दो ही
उपाय बच जाता है !
या तो किसी बड़े से
घर में छुप कर
यूॅं दुबक जाएं
कि कोई देख
तक नहीं पाए !
या फिर रण़भूमि में
वीर की तरह डटे रहकर
मुकाबला किया जाए !
ऑंधी को ऑंधी
और तूफ़ान को तूफ़ान
की ही भाषा में मुॅंहतोड़
ज़वाब दे दिया जाए !!
कर्मभूमि से भाग खड़ा होना
शूरवीरों को शोभा नहीं देता !
इसीलिए चलो चलते हैं….
अपने अस्त्र-शस्त्र तैयार करते हैं!
चलो अपने म्यान से
तलवार खींचते हैं !
पहले दुश्मनों को
होशियार करते हैं !
फिर उनपे तीक्ष्णता से
प्रहार करते हैं !
इस कदर कि याद रहे
उन्हें जन्म-जन्मांतर तक !
फिर से मुकाबला करने की
कभी जुर्रत नहीं वो कर पाएं !!
और फ़िर अंत में सबपे ही
बहुत अच्छी तरह से
शानदार विजय
हासिल करते हैं !
चलो चलते हैं !
चलो सरताज़ बनते हैं !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 23-08-2021.
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