चलो कुछ कहें
जाने कितनी बातें अनकही, चलो कुछ कहें,
रह गई हैं थी कुछ अनसुनी , चलो कुछ कहें l
चलते चलते छूटते गए जाने कितने ही अपने,
याद कर लें गुजरा हुआ वक्त , चलो कुछ कहें l
अधूरी छूटी बातें कितनी, कल पर बाकी रहीं,
आज है मौका , बैठ लेते हैं, चलो कुछ कहें l
कौन रहना है यहां पर, और कितने दिन बचे,
अब तो कुछ दिल हल्का करें, चलो कुछ कहें I
डा राजीव “सागरी”