” चलो उठो सजो प्रिय”
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चलो उठो सजो प्रिय
तुम्हें बहुत दूर जाना है
अपनी सजी देेह का
मातम मनाना है
पीड़ा अपनी छुपा
लबों से मुस्कुराना है
चलो उठो सजो प्रिय
तुम्हें बहुत दूर जाना है
जिस आंगन गुडियों से खेली
वो आंगन छोड़ जाना है
अपनी इच्छाओं का दमन कर
दूजा घर-आंगन बसाना है
धीर-गम्भीर बन
घर की रीत निभाना है
पीड़ा अपनी छिपा मुस्कुराना है
चलो उठो सजो प्रिय
तुम्हें बहुत दूर जाना है
अपनी सजी देह का
मातम मनाना है
वादा किया जो हिय से
वो वादा निभाना है
डोली खड़ी सजी द्वारे
भरे मन से थापे लगाना है
घड़ी विदाई की आई
खिल अंजलि में भर
माँ की झोली सजाना है
नैना डबडबाये मगर
मुस्कुराना है
चलो उठो सजो प्रिय
बहुत दूर जाना है
अपनी सजी देह का
मातम मनाना है
चलो उठो सजो प्रिय
बहुत दूूर जाना है
हिदायते पापा ने जो दी
उन्हें अमल में लाना है
माँ ने जो सीख दी
उन्हीं से जीवन बिताना है
भैया ने जो समझाया
पिया का घर अब है तेरा
अब ये घर बेगाना है
डोली पे तू जा रही
अर्थी पे ही आना है
मां के दूध का कर्ज चुकाना है
कलेजा मुंह को आ रहा
मगर मुस्कुराना है
चलो उठो सजो प्रिय
बहुत दूर जाना है
अपनी सजी देह का
मातम मनाना है
चलो उठो सजो प्रिय
बहुत दूर जाना है |
– शकुन्तला अग्रवाल, जयपुर