चलो आज चौपाल लगाएं
चलो आज चौपाल लगाएं,
एक ऐसी चौपाल जिसमें बातें हों
जल की -थल की, नभ की -धरा की,
पर्यावरण संरक्षण की, वृक्षों से सजी धरा की।
जिसमें बुजुर्ग गार्गी ,विद्योत्तमा से शुरू करके कलपना चावला तक पहुंच जाएं।
जिस चौपाल में इतिहास के मनीषियों से,
विज्ञान के अन्वेषको के चरित्र चहुं ओर हों छाए।
एक ऐसी चौपाल जो लिंग भेद मिटा कर बेटियों को गर्व से जीना सिखलाए।
आत्मसात होकर उनके जीवन के प्रत्येक पहलू को समानुभूति से सुलझाए।
एक ऐसी चौपाल जिसमें चले संस्कारों की पाठशाला।
जिसमें गंगा को सिर्फ नदी न मानकर माता पुकारा जाए।
गौमाता का आसरा सिमटता न नजर आए।
एक ऐसी चौपाल जिसमें बातें हों अहसास की,लगाव की विश्वास की।
बड़ों की राय में हिन्दुस्तान ही नजर आए।
जल संरक्षण ,को जीवन का आधार बनाया जाए।
एक ऐसी चौपाल जिसमें न हिन्दू,न मुसलमान हो , कोई, न दलित न जाति -पा ति की दीवार बस
रेखा हर चौपाल पर छोटा सा हिंदुस्तान नज़र आए।
चलो आज चौपाल लगाएं।